[
व्यंग्य ]
चचा
बैठे ट्रेन में
+रमेशराज
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वैसे मैं न तो बीमा ऐजेन्ट हूँ और न किसी बीमा कम्पनी
वाले का रिश्तेदार | फिर भी अपनी सफेद दाड़ी
और नकली दांतों के अनुभव के आधार पर इतना जरूर कहूंगा कि आप किसी महाजन से कर्ज लें,
डकैती डालें, चोरी
करें या अपने घर के सारे बर्तन बेच दें, लेकिन बीमा जरूर करायें | अरे भाई! बीमा हर
कोई कराता है, चाहे काला चोर हो या सफेद व्यापारी, सरकारी तंत्र का अंग हो या अपंग
हो, पैदल चलता हो या बैलगाड़ी में, रेल में यात्रा करता हो या हवाई जहाज में।
अब आप कहेंगे कि मैं न तो बीमा एजेन्ट हूं और न बीमा कम्पनी का कोई रिश्तेदार, फिर बीमा कम्पनी
की इस तरह पैरवी क्यों कर रहा हूं | अरे भाई!
हुआ यह कि सौभाग्यवश एक दिन हमें ट्रेन में सफर करने का मौका मिला | हम मारे खुशी के
अपने चरमराते ढांचे से और हिलती हुयी गर्दन को लेकर डिब्बे में तुरन्त घुस गये | अभी
एक कोने में टिक ही पाये थे कि एक मनचले युवक की आवाज हमारे कानों में पड़ी-’’
रामगढ़ गये तो यूं समझो कि रामगढ़ गये |” हमने कुछ घबराकर उस युवक से कहा-’’
बेटे! तुम्हें ऐसी बात नहीं करनी चाहिये |’’
मेरा यह कहना था कि युवक ने तपाक से एक और डायलाग उगल
दिया, “चचा! जिन्दगी एक सफर है सुहाना, यहां कल क्या हो किसने जाना |’’
यह सुनते ही हमारा जर्जर शरीर झुनझुने की तरह बज उठा
| हमने थोड़ा संयत होते हुए उस युवक में पूछा-’’ बेटे
तुम करते क्या हो ?’’ यह सुनकर
वह युवक मुस्कराते हुए बोला- चचा! मैं लोगों का जीवन-बीमा करता-फिरता हूँ | आपने अपना
बीमा कराया कि नहीं |”
“ बेटे! मैं तो
साठ से ऊपर का हो रहा हूं | अब बीमा कराकर करूंगा क्या?”
मैं
इतना कह ही पाया था कि पूरे डिब्बे में हड़कम्प मच गया | मारे भय के किसी ने अपनी आंखे
बन्द कर लीं तो कोई हनुमान चालीसा का जाप करने लगा | तभी हमें मालूम पड़ा कि इसी लाइन
पर तेज गति से एक और एक्सप्रेस आ रही है और एक्सीडेन्ट की सम्भावना है | उस समय हमारी
स्थिति ठीक वैसी ही हो गयी जैसे किसी मरीज को पेन्सिलिन का इंजेक्शन रिएक्शन कर गया
हो | जाने कौन-सी शुभ घड़ी थी कि दुर्घटना होते होते टल गयी वरना...|
वह युवक पुनः एक फिकरा कसने लगा....’’
इब्तिदा-ए-इश्क है रोता है क्या?
आगे...आगे देखिए होता है क्या?’’
उस युवक का इतना कहना था कि गाड़ी झटके के साथ रुक गयी,
जबकि वहां न कोई स्टेशन था और न दूर तक कोई शहर दिखलायी दे रहा था | घने भयावह जंगल
के बीच यकायक गाड़ी रुकने का सबब हमारी समझ में नहीं आया | हमने उसी युवक से जिज्ञासा जाहिर करते हुए पूछा-“बेटे! अब क्या हुआ
?’’ उस युवक ने उत्तर देने के बजाय मुस्कराते हुए फिर एक नया फिकरा
कसा-“अब तो प्रतिपल घात है चाचा, दर्दों की सौगात है चाचा | ‘‘
उस युवक की बेतुकी लेकिन भय से सराबोर कर देने वाली
बातों से हमें लगने लगा कि यह युवक कोई साधारण
युवक नहीं, कोई पहुंचा हुआ ज्योतिषि मालूम पड़ता है | हम आगे होने वाली दुर्घटना से
आतंकित होकर थर-थर कांपने लगे| हमारे दिमाग पर हर बार एक ही प्रश्न हथौड़े की तरह पड़
रहा था- “प्रभु! अब क्या होगा?”
तभी एक कड़कदार आवाज हमारे कानों में पड़ी- ‘बुड्डे
क्या है तेरे पास, चल जल्दी से निकाल |”
दो
नकाबपोश हमारे सामने चाकू लेकर खड़े थे | उन्हें देख हमें मानो काठ मार गया | हमने
अपनी जेब से चार आने के खरीदे चने, एक
अठन्नी और रामगढ़ का टिकिट उन्हें चुपचाप भेंट कर दिया | वे खिसियाकर यह कहते हुए दूसरी सवारियों की ओर बढ़ गए-
‘‘साला बुढ्डा मजाक करता है
|’’
हमने
चैन की सांस ली और अपनी बूढ़ी आंखों पर जोर डालते हुए चारों तरफ निगाह मारी | लेकिन
फिकरा कसने वाले युवक का कहीं पता न था | डकैत सवारियों का माल लूटकर चले गए | तभी
वह युवक शौचालय से निकला और जैसे ही गाड़ी आगे बढ़ी, उस युवक ने पुनः एक नया फिकरा
कसा-’’ चोर माल ले गये,
लोटा थाल ले गये, सूटकेस अटैची धोती शाल ले गये, और
सब डरे-डरे ट्रेन में खड़े-खड़े चाकू की चमकती हुयी धार देखते रहे |’’
एक तरफ जहां पूरे डिब्बे में मातम जैसा माहौल बना हुआ
था, वहीं वह युवक ऐसे जुमले कस रहा था कि हमारी
इच्छा होने लगी कि या तो उस युवक के मुंह पर टेप जड़ दें या अपनी दाढ़ी नोंच लें |
लेकिन अपने देश की कानून व्यवस्था की तरह हम उस युवक और अपने साथ न्याय करने में कहीं
न कहीं कतरा रहे थे।
अभी गाड़ी बमुश्किल से दो किलो मीटर आगे बढ़ी होगी
कि झटके के साथ पुनः रुक गयी | गाड़ी के रुकने के साथ-साथ अब हमें लग रहा था कि हमारे
जीवन की गाड़ी भी रुकने वाली है | लेकिन वह कमबख्त युवक था कि अब भी गुनगुना रहा था
‘समझौता गमों में कर लो,
जिदंगी में गम भी मिलते हैं |”
सूरदासजी
ने लिखा है- ‘मेरो मन अनत कहां सुख पावै, जैसे उड़ जहाज को पंछी फिर जहाज पै आवै।‘ वैसी
ही स्थिति हो रही थी हमारी | हमें उस युवक की जुमलेबाजी पर इतना गुस्सा आ रहा था कि
हम उससे बात भी नहीं करना चाहते थे लेकिन हमारी मजबूरी कि हमें मिमियाते स्वर में उस
युवक से पूछना ही पड़ा’’ बेटे! अबकी बार गाड़ी क्यों रूक गयी’’?
‘‘कुछ
नहीं चचा कुछ देशभक्तों ने पटरियों के नट वोल्ट खोल दिए हैं और अब गाड़ी पर पथराव की
योजना बना रहे हैं |’’ उस युवक ने
यह बात जितने सहज ढंग से कही, हम
उतने ही असहज हो गये | तभी एक पत्थर हमारे माथे पर लगा | हम गश खाकर बेहोश हो गये
| जब होश आया तो गाड़ी रामगढ़ में प्रवेश कर रही थी और वह युवक हमारी ओर मुस्कराते
हुए हमसे कह रहा था- ‘‘जान बची लाखों
पाए, लो चाचा रामगढ़ आए |’’
रामगढ़ आते ही हमने अपना चश्मा ठीक किया,
लाठी उठायी और आनन-फानन में ट्रेन से बाहर कूद पड़े
| वह युवक जोर-जोर से चिल्लाते हुए अब भी हमसे कह रहा था- ’’
चचा आपने अपना जीवन बीमा नहीं कराया तो कोई बात नहीं...
अपने बच्चों का जीवनबीमा जरूर करा लेना....|”
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+रमेशराज, 15/109 ईसानगर, अलीगढ़-202001